भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने क्रेडिट डिफॉल्ट स्वैप (सीडीएस) चर्चा में क्यों ?

क्रेडिट डिफॉल्ट स्वैप (Credit Default Swap)

चर्चा में क्यों?

भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने क्रेडिट डिफॉल्ट स्वैप (सीडीएस) पर मसौदा दिशानिर्देशों जारी करते हुए कहा है कि गैर-खुदरा उपयोगकर्ताओं को हेजिंग और अन्य उद्देश्यों के लिए क्रेडिट डेरिवेटिव में लेनदेन करने की अनुमति होगी।

RBI

क्रेडिट डिफॉल्ट स्वैप (Credit Default Swap) क्या होता है?

क्रेडिट डिफ़ॉल्ट स्वैप किसी विशेष कंपनी द्वारा डिफ़ॉल्ट जोखिम के खिलाफ कराया गया एक प्रकार का बीमा है।
क्रेडिट डिफॉल्ट स्वैप को एक प्रकार का वित्तीय व्युत्पन्न (डेरिवेटिव) या अनुबंध भी कहा जाता है, जो किसी निवेशक को उसके क्रेडिट जोखिम को किसी अन्य निवेशक के साथ “स्वैप” करने या “ऑफसेट” करने की अनुमति देता है।
इसके तहत दो पक्षों के बीच एक अनुबंध किया जाता है, जिनमें से एक को सुरक्षा खरीदार (Protection Buyer) और सुरक्षा विक्रेता (Protection Seller) कहा जाता है।

डिफ़ॉल्ट के जोखिम को स्वैप करने के लिए, ऋणदाता एक अन्य निवेशक से क्रेडिट डिफ़ॉल्ट स्वैप खरीदता है जो उधारकर्ता डिफ़ॉल्ट के मामले में ऋणदाता की प्रतिपूर्ति करने के लिए सहमत होता है।

सीडीएस के अनुबंध को बनाए रखने के लिए खरीददार विक्रेता को प्रीमियम भुगतान करता है। डिफॉल्ट के मामले में, सीडीएस के खरीदार को मुआवजा मिलता है जबकि सीडीएस के विक्रेता को डिफॉल्ट किए गए ऋण पर कब्जा मिलता है।

हेजिंग क्या है?

हेजिंग शेयर बाजार में अपनाई जाने वाला एक मानक कन्वेंशन है। साधारण तौर पर, निवेशक बाजार में उतार-चढ़ाव के कारण होने वाली आर्थिक हानि से खुद को बचाने के लिए विभिन्न प्रकार के हेज का उपयोग करते हैं।
आसान शब्दों में कहा जाये तो जब कोई क्रेता, विक्रेता या निवेशक अपने कारोबार या परिसंपत्ति (असेट) को संभावित मूल्य परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभाव से बचाने के उपाय करता है तो उसे ‘हेजिंग’ कहते हैं।
हेजिंग रणनीतियों में आमतौर पर विकल्प और वायदा अनुबंध डेरिवेटिव्स शामिल होते हैं।

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