दशलक्षण पर्व-पिपलाई

दशलक्षण पर्व : उत्तम आकिंचन्य यानि आत्मकेन्द्रित करना l
दशलक्षण महापर्व के 9वे दिन जैन धर्मावलंबियो ने उत्तम आकिंचन्य धर्म की पूजा अर्चना की l सकल जैन समाज पिपलाई के प्रवक्ता बृजेन्द्र जैन ने इसे परिभाषित करते हुए बताया की आकिंचन्य धर्म आत्मा की उस दशा का नाम हैं जहां पर बहारी सब छूट जाता है किन्तु आन्तरिक संकल्प विकल्पो की परिणति को भी विश्राम मिल जाता है l बाहरी परित्याग के बाद भी मन मे “मै” और ‘मेरे पन ‘का भाव निरंतर चलता रहता है, जिससे आत्मा बोझिल होती है और मुक्ति की उध् र्वगामी यात्रा नही कर पाती l
महामंत्री विनोद जैन ने बताया की जिस प्रकार पहाड़ की चोटी पर पहुंचने के लिए हमे भार रहित होना जरूरी हैं उसी प्रकार सिद्दालय की पवित्र उँचाइयां पाने के लिए हमे आकिंचन्य, एकदम खाली होना आवश्यक है l परिग्रह का परित्याग कर परिणामो को आत्मकेन्द्रित करना ही आकिंचन्य धर्म की भावधारा हैं l
उपसचिव आशु जैन ने बताया की पिपलाई मे स्थित दिगम्बर जैन मन्दिर मे रमेश जैन, सुनिल जैन, मुकेश जैन,अमित जैन,नितिन जैन,अक्षत जैन,अभिनन्दन जैन की ओर से शान्ति धारा की गई l

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